ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ

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Baba Nand Singh Ji Maharaj claimed and accepted neither suzerainty over this world nor the lordship over the worlds hereafter, He accepted neither all the super-natural powers of Riddhis and Siddhis nor the Sainthood; neither any fame nor any name but remained totally an unknown humble servant of Sri Guru Granth Sahib.

ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ एक संपूर्ण संत के चरणों की धूलि छानती फिरती है किंतु अपने आप को संत कहलाने वाले बहुत से ऐसे होते है जो इन ऋद्धियों-सिद्धियों (सफलता और संपूर्णता की शक्तियों) को प्राप्त करने के लिए इनके पीछे भागते फिरते हैं। ऐसे वेषधारी संत ऋद्धियों-सिद्धियों की शक्तियों को प्राप्त करने के लिए इनसे सम्बद्ध देवियों की पूजा करते हैं। वे नाम, प्रसिद्धि और बहुत से सेवकों की कामना और प्रतीक्षा करते हैं। जबकि परमात्मा के चरण-कमलों में लीन एक पूर्ण और सच्चे संत के पास इन सबके प्रति आँख उठाकर देखने की फुर्सत भी नही होती। ऋद्धि-सिद्धि की ये देवियाँ बहुत ही विनम्रता और श्रद्धा से परमात्मा द्वारा प्रदान किए जाने वाले उस पल की प्रतीक्षा में रहती हैं जब वे ऐसे पूर्ण संत की सेवा का अवसर पा सकें।

एक सच्चे प्रेमी व सच्चे संपूर्ण त्यागी संत और सांसारिक के बीच यही एक उल्लेखनीय अंतर है।

ऋद्धि-सिद्धि की शक्तियों के भूखे ये वेषधारी संत स्वयं अपना महत्त्व और प्रसिद्धि बढ़ाने के चक्करों में आसानी से उलझ जाते हैं। दूसरे लोगों को प्रभावित और अपने प्रति आकर्षित करने के लिए कई प्रकार के चमत्कारी तरीकों और प्रयत्नों में व्यस्त रहते हैं। वे स्वयं माया की हथकड़ियों में जकड़े रहते हैं। जब वे स्वयं मुक्त नहीं हो सकते तो फिर दूसरों के मुक्तिदाता कैसे बनेंगे ?

परमात्मा और सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले साधकों को माया के प्रति आकर्षित करने वाले एक-के-बाद-एक प्रलोभन मिलते हैं। अनेक प्रकार के चमत्कार, किसी को स्वस्थ करने की शक्ति तथा किसी की भाग्य-लिपि पढ़ लेने के कौशल आदि कार्य जन-मन को अपने प्रति अत्यंत आकर्षित करने व लुभाने वाले होते हैं। कोई साधक ऐसे चमत्कारों में आसानी से फँस जाता है और परमात्मा को पाने का अपना लक्ष्य भूल जाता है। परमात्मा का सच्चा सेवक ऐसी भटकनों की परवाह नहीं करता और परमात्मा के प्यार में पूरी तरह से लीन हुआ वह लक्ष्य-प्राप्ति तक आगे-ही-आगे बढ़ता रहता है।

बाबा नंद सिंह जी महाराज ने न तो ऋद्धि-सिद्धि की गैर कुदरती शक्तियों को, न ही संतपने (संत बनने की लालसा) को और न ही प्रसिद्धि को स्वीकार किया। पूर्ण अज्ञात रहकर वह तो श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के विनम्र सेवक ही बने रहे। यह उनके ईश्वरीय प्रेम, पूजा और भक्ति का महत्त्वपूर्ण और विशेष पक्ष है।

बाबा नंद सिंह जी महाराज हमेशा अपने नियमों और सिद्धांतों पर चट्टान की तरह अडिग रहे। इस संसार के प्रति कोई आसक्ति न रखते हुए वे इस समय आध्यात्म के शिखर पर प्रकाशमान है।

बाबा नंद सिंह जी महाराज की अलौकिक नर देह इस मनुष्य के लिए ऐसा अनुपम ईश्वरीय उपहार है जो केवल इस भू लोक को ही नहीं, बल्कि तीनों लोकों को पवित्र कर रहा है और तीनों लोकों की ईश्वरीय शान को बढ़ा रहा है।

बाबा नंद सिंह जी महाराज ने इस जगत् पर अधिराज्य हासिल कर लेने का न तो दावा किया और न ही इसे स्वीकार किया और न ही इस लोक से परे किसी सत्ता पर स्वामित्व की बात की। उन्होंने न तो ऋद्धि-सिद्धि की अतिप्राकृतिक शक्तियों को, न ही संतपने को और न ही उन्होंने प्रसिद्धि को स्वीकार किया बल्कि वे तो श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अज्ञात और विनम्र सेवक बन कर रहे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब ही उनकी आत्मा, उनकी अर्चना, पूजा और प्रेम का सर्वोत्तम और एक मात्रा लक्ष्य था।

बाबा नंद सिंह जी महाराज एक महानतम दिव्य नायक समान प्रकाशमान हैं। संसार के प्रति वे सर्वोपरि रूप से अनासक्त हैं। उनकी दिव्यता तीनों लोकों को पवित्र और शोभित कर रही है।

एक पूर्ण सच्चे संत का शरीर परालौकिक होता है। उसकी अबाध गति न केवल ब्रह्मण्ड के सभी क्षेत्रों तक, बल्कि श्री गुरु नानक साहिब जी के उच्चतम निवास स्थान ‘सच्च खंड’ तक होती है और वह हमेशा ही उस दिव्य नाम की खुमारी में लीन रहता है।