सर्वश्रेष्ठ पालनहार

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Once Babaji in a Divine mood told that from the very moment anyone sets out towards Him, his whole care and protection is His responsibility.

Miraculous saving from certain death is a common experience with many devotees.

अपने सच्चे सेवक की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए परमात्मा स्वयं उनकी पूर्ति करता है।

परमात्मा के सच्चे स्वरूप में जाग्रत् भक्त को सांसारिक चिन्ताओं से चिंतित होने के लिए समय नहीं मिलता। परमात्मा में पूर्ण रूप से लीन ऐसे सेवक की देखभाल परमात्मा स्वयं ही करता है।

हमेशा परमात्मा के ध्यान में लीन रहने वाले बाबा जी त्रिगुणातीत थे। वे माया के तीनों गुणों से ऊपर थे।

अपने आप को संपूर्ण रूप से समर्पित करते ही कोई परमात्मा के पूर्ण अधिकार की पात्राता पाता है। एक श्रद्धालु के प्रत्येक क्षण की देखभाल, सर्वश्रेष्ठ पालनहार की ज़िम्मेवारी बन जाती है। परमात्मा उस सेवक में विचरता है और उसी के माध्यम से परमात्मा स्वयं को संसार में दर्शाता है। अपने शरीर के प्रति संकेत करते हुए उनका यह कथन है-

एह शरीर गुरु नानक दा है
उस दे हुक्म विच ही विचरदा है।।

किसी गाँव का एक नौजवान, जो पहली बार संगत के साथ महान् बाबा जी के दर्शनों के लिए आ रहा था, रेलवे स्टेशन के ऊँचे प्लेटफार्म पर चलती गाड़ी के बीच के फ़ासले में गिर पड़ा तथा चलती गाड़ी के भारी पहियों के साथ घिसटता चला गया। नौजवान के साथ अकस्मात् घटी इस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में उसके निश्चित रूप से कुचलकर मर जाने की आशंका से सारी संगत सदमे व निराशा में डूबी हुई थी। किंतु रुकी हुई गाड़ी के नीचे से उस लड़के को सुरक्षित और प्रसन्नचित्त निकलते देखकर पूरी संगत जड़वत् होकर आश्चर्य में पड़ गयी। स्नान के समय महान् बाबा नंद सिंह जी महाराज के सारे शरीर पर पहियों के निशान और जख़्म देखकर ह़जूरिया (निजी सेवक) हैरान था।

एक बार रूहानी समागम में बाबा जी ने फ़रमाया कि जिस भी घड़ी कोई श्रद्धालु उनकी ओर चल पड़ता है, उसी घड़ी से ही उसकी संपूर्ण देखभाल और सुरक्षा की ज़िम्मेवार उनकी अपनी बन जाती है। निश्चित मौत से चमत्कारी रूप से बच जाना अनेक सेवकों के लिए एक सामान्य अनुभव था और आज भी है।

चरन सरन गुरु एक पैंडा जाय चल
सतिगुरु कोटि पैंडा आगे होइ लेत है।।

-भाई गुरुदास जी।

एक पूर्ण संत कभी भी प्रकृति और भाग्य के तरीके और मर्यादा को बदलना पसंद नहीं करता बल्कि अपने श्रद्धालुओं के दुःख स्वयं अपने ऊपर ले लेता है। उनका स्वरूप, कर्म-सिद्धांत के अधीन नहीं हो तो किसी दुःख या कष्ट का उनको प्रभावित करना तो क्या, वह उन्हें छू तक नहीं सकता; जब तक कि वे दूसरों के दुःख-तकलीफों को स्वयं अपने ऊपर न ले लें। धरती का बोझ हल्का करने के लिए इसके मुक्तिदाता संसार के कष्टों और पापों का भार स्वयं सहन कर लेते हैं।

महान् बाबा जी के भौतिक शरीर को, जिसके सात करोड़ रोम परमात्मा के गरिमामय नाम की महिमा को प्रस्तुत करते हैं तथा प्रत्येक रोम उस नाम की अमर शान का प्रतीक है, बीमारी या दुःख प्रभावित नहीं कर सकते।