घर हमारे गुरु का प्रवेश (गुरु का साडे गृह विखे परवेश)

Humbly request you to share with all you know on the planet!

हम अपने घर में एक मेहमान का स्वागत और सत्कार उसके रुतबे और सम्बन्ध के अनुरूप करते हैं। किसी अत्यन्त प्रिय और आदरणीय मेहमान के लिए हम अच्छा प्रबन्ध करते हैं। पूजनीय अतिथि अपनी प्रतिष्ठा और आवश्यकताओं के अनुरूप अपेक्षित सुविधाएँ प्राप्त करते हैं। ऐसे मेहमान के लिए ठहरने और खाने-पीने का उत्तम प्रबन्ध होता है।

समानता के आधार पर बराबर वालों के लिए आवभगत हमारे अपने स्तर की होती है।

संदेशवाहकों, नौकरों और दूसरे काम करने वालों के लिए यह व्यवस्था निम्नस्तरीय होती है, जिस तरह हम अपने घरेलू चाकरों के लिए करते हैं।

जुगों-जुग अटल श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के लिए भी हमारे घरों में इन्हीं तीन तरीकों में से किसी एक की तरह ही व्यवहार होता है। अधिकतर घरों में परमप्रिय और सम्माननीय सतगुरु जी (श्री गुरु ग्रन्थ साहिब) को अज्ञानतावश नौकरों के कमरों, गैराजों और स्टोरों अथवा ऐसे ही अयोग्य स्थानों में स्थापित कर दिया जाता है। बहुत सारे घरों में गुरु के साथ समानता के आधार पर व्यवहार किया जाता है। केवल विशेष अवसरों पर ही गुरु की सेवा, पूजा, अर्चना अतिप्रिय और अत्यन्त पूजनीय सतगुरु की तरह होती है।

सिख-संगत को अपनी जीव-शक्ति और प्राणशक्ति सतगुरु से प्राप्त होती है। सतगुरु की प्रत्यक्ष उपस्थिति सिखों के मन में अथाह आदर उपजाती है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मात्रा एक ग्रन्थ नहीं बल्कि जीते-जागते साक्षात गुरु हैं। अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के लिए हर हृदय में सर्वोच्च प्यार और सत्कार का भाव उदित होना चाहिए।

बाणी पहले भी गुरु का स्वरूप थी। गुरु नानक देव जी ने बाणी के द्वारा उपदेश दिया। वही ज्योति गुरु अंगद देव में आयी। बाणी के द्वारा उपदेश होता रहा। तीसरी पातशाही श्री गुरु अमरदास जी गद्दी पर विराजे और उसी तरह उपदेश जारी रहा। अब श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी गद्दी पर विराजमान हैं। उपदेश बाणी के माध्यम से हो रहा है। गुरुमुख के लिए आज भी गुरु जी बाणी के द्वारा उपदेश कर रहे हैं। मूर्ख के लिए गुरु और गुरुबाणी में अन्तर है। ज्ञानी के लिए बाणी ही प्रत्यक्ष गुरु है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी गद्दी पर विराजमान हैं, उपदेश बाणी-द्वारा है। गुरमुख के लिए कोई अन्तर नहीं। अन्तर हमारी दृष्टि में है। दृष्टि को परिपक्व करना है।

एक बार दीवान (संगत-दरबार) में अन्तर्मग्न अवस्था में विराजित बाबा नंद सिंह जी महाराज ने बैरागन से पावन शीश को उठाते हुए अपने पावन नेत्रा खोल कर संगत की ओर अपनी कृपा-दृष्टि डाली। कुछ नये सरदार संगत में रागियों के पीछे बैठे थे। उनकी ओर देखते हुए बाबा जी ने उन से एक प्रश्न किया कि आप कहाँ जाना पसन्द करेंगे ? आप कहाँ रहना पसन्द करेंगे ? उन्हें कुछ समझ नहीं आया। बाबा जी ने एक बार फिर अपना सवाल दोहराया- आप कहाँ रहना पसन्द करेंगे ? कहाँ जाना पसन्द करेंगे। वहाँ उपस्थित नये व्यक्ति कुछ भी न समझ सके और पहले की तरह ही चुप रहे। भाई रतन सिंह जी ने हाथ जोड़कर बाबा जी से विनती की-गरीब निवाज ़! आप ही बताने की कृपा करें।

बाबा नंद सिंह जी महाराज ने सरदारों की ओर देखते हुए फ़रमाया कि आप वहीं जाओगे, जहाँ कोई सत्कार से ले जाएगा। स्वीकृति में एक-दो ने सिर हिलाते हुए कहा-जी महाराज ! बाबा जी ने आगे फरमाया कि आप वहीं रहना पसंद करोगे, जहाँ कोई आदरपूर्वक आप को रखेगा। इस पर सभी ने स्वीकृति में कहा- जी ग़रीब निवाज़ ! बाबा नंद सिंह जी ने महाराज ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की ओर इशारा करते हुए फ़रमाया कि यही स्वभाव मेरे गुरु नानक पातशाह का है। वे वहीं जाते हैं जहाँ उन्हें कोई पूरे आदर और प्रेम से रखे।