गुरु की मूर्ति मन में ध्यान (गुर की मूरति मन महि धिआनु) - 2

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... I pray grant blindness again to this humble devotee of yours. As these blessed eyes, out of your compassion, have been opened to Vision Eternal, let these be blinded to this world for ever.”

सतगुरु के प्रकाशमान् स्वरूप का, परमात्मा के पवित्र चरणों का, जो भी अमृतपान कर लेता है, वह उस परमआनन्द में सदा के लिए लीन हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए संसारिक भोग और इच्छाएँ निरर्थक हो जाती हैं। परमात्मा के दिव्य स्वरूप के सामने सांसारिक सुन्दरता अर्थहीन और तुच्छ लगती है। श्री गुरु अंगद साहिब जी ने श्री गुरु नानक साहिब जी के ईश्वरीय स्वरूप के अलौकिक दर्शन किए थे। श्री गुरु अमरदास जी ने श्री गुरु अंगद साहिब जी के ऐेसे ही दिव्य स्वरूप का अमृतपान किया, श्री गुरु रामदास जी ने श्री गुरु अमरदास जी के अनुपम स्वरूप के दर्शन किए और इसी क्रम से यह परम्परा आगे तक जारी रही।

सतगुरु की दिव्य आभा और अलौकिक छवि ने श्रद्धालु सिखों के ध्यान को पूरी तरह अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। सारे संसार से अलग उनके ध्यान और दृष्टि का केन्द्र सतगुरु का प्यारा स्वरूप था। भाई मतिदास जी अपने अन्तिम श्वास तक केवल श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के दिव्य स्वरूप के दर्शन करते रहे थे। यही उनकी अन्तिम इच्छा थी। भाई कन्हैया जी को प्रत्येक व्यक्ति व प्रत्येक स्थान, मित्रा और शत्रा सभी में केवल गुरु गोविन्द सिंह साहिब जी के प्रेममयी दिव्य स्वरूप के ही दर्शन होते थे।

सत्य-अभिलाषी आदरणीय जन ! दास भी श्री गुरु नानक देव जी की उसी ईश्वरीय स्वरूप और सौन्दर्य की उपासना करता है तथा उन्हीं के श्री चरण कमलों को ही पूजता है।

जिसने भी इस तरह अपने शरीर और मन को सतगुरु को समर्पित किया है, वह सदा गुरुचेतना में ही लीन रहता है। जब मन सतगुरु की भक्ति में, रसना (जिह्वा) उनके गुणगान में, आँखें उनके ईश्वरीय स्वरूप को निहारने में और शरीर व हाथ उनकी विनम्र सेवा में लीन हों, तब ‘मैं’ और ‘मेरी’ की भावना पूरी तरह लुप्त हो कर ‘तूँ’ में बदल जाती है।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान की, तभी वह भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप को देखने में समर्थ हो सका। सतगुरु की कृपा से ही भाई कन्हैया जी को दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी। जिसे पाकर उन्हें हर जगह हर किसी में अपने प्रिय सतगुरु, अपने इष्ट गुरु गोबिन्द जी के ही दर्शन होते थे।

गुरु गोबिन्द सिंह जी ने भाई नंदलाल जी को भी अपना सच्चा स्वरूप दिखाया था।

रूह दर हर जिस्म गुरु गोबिंद सिंह।
नूर दर हर चश्म गुरु गोबिंद सिंह॥
-भाई नंदलाल जी