सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना का तुरंत पूरा होना

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Mysterious and subtle are the ways in which Mahan Babaji reaches out to His devotees all over the globe even now. i.e. sixty eight years after His seeming physical disappearance from the world scene. This more than anything else highlights HIS ETERNAL GLORY.

यह घटना लगभग सन् 1945 के आस-पास की है। बाबा जी की कुटिया के बाहर कोई व्यक्ति बुरी तरह से रुदन कर रहा था। मेरे पिता जी ने उससे रोने का कारण पूछा। उसका नाम बलवन्त सिंह था। वह बाबा जी की पवित्र याद में रो रहा था। उसने स्वयं हमें एक आपबीती घटना सुनाई।

“दूसरे विश्व-युद्ध में मैं सेना के साथ इटली गया हुआ था। एक बार मैं वहाँ पैट्रोल ड्यूटी देने के कार्य से अपने कुछ फौजी साथियों सहित बाहर गया हुआ था। वहाँ पर हम शत्रुओं के घेरे में पँफस गए। हमारे कई साथी जवान मारे गए तथा मैं और मेरा एक अन्य साथी भाग कर उस पहाड़ी क्षेत्रा में एक खाई में छुप गए। वहाँ तीन दिन बिल्कुल भूखे रहे। हमारी हालत बहुत दयनीय थी।”

उस ने बात जारी रखते हुए कहा-

“हम बहुत ही खतरे में थे। मैंने पहली बार अपने सच्चे व भरे हुए हृदय से रक्षा के लिए बाबा नंद सिंह जी महाराज के समक्ष प्रार्थना की कि सामने दिखाई दे रही मृत्यु का ग्रास बनने से हमारी रक्षा करो। मैंने ऐसे दृढ़ निश्चय व विश्वास से पहले कभी प्रार्थना नहीं की थी। मेरी प्रार्थना उसी समय सुनी गई। मैंने प्रार्थना पूरी की ही थी कि कुछ समय उपरान्त ही वहाँ हमें एक स्त्री की आवाज़ सुनाई पड़ी जो हमें बुला रही थी। पहले तो हम भयभीत हुए। फिर उसने विश्वास दिलाया कि मुझे आप के स्वामी बाबा नंद सिंह जी महाराज ने भेजा है। हम अपने छुपने के स्थान से बाहर आ गए। एक बुजुर्ग स्त्री भोजन व पानी लेकर खड़ी थी। उसने हमें बड़े आदर व प्यार से भोजन कराया। वह समीप ही एक गाँव की ईसाई पुजारिन थी। उसको हमारे रक्षक बाबा नंद सिंह जी महाराज के दर्शन हुए थे तथा उसको बाबा जी ने हमारे भोजन-पानी ले जाने का तथा हमें खिलाने का आदेश दिया था। भोजन खिलाने के पश्चात् वह हमें अपने घर में ले गई। अगली रात्रि उसने हमें अपनी यूनिट में पहुँचाने का प्रबन्ध कर दिया था।”

यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि वह स्त्री लार्ड क्राइस्ट की पुजारिन थी तथा काफी समय से लार्ड क्राइस्ट के दर्शन करने की अभिलाषा रखती थी। ज्यों ही बाबा नंद सिंह जी महाराज ने उस को दर्शन देकर बलवन्त सिंह तथा उस के साथी के लिए भोजन ले जाने का आदेश दिया तो उसी समय वे लार्ड क्राइस्ट के रूप में प्रकट हुए। उस के बाद पुनः बाबा नंद सिंह जी महाराज का रूप धारण कर लिया। उसने रो-रो कर उनका धन्यवाद किया कि तुम्हारे कारण मुझे लार्ड क्राइस्ट के दर्शन हो गए तथा यह ज्ञान हुआ कि मेरे प्रभु लार्ड क्राइस्ट व आपके रक्षक बाबा नंद सिंह जी महाराज एक ही हैं।

बलवंत सिंह आप बीती सुनाता जा रहा था, साथ ही वह महान् रक्षक और जीवन-मृत्यु के स्वामी बाबा नंद सिंह जी महाराज की याद में बच्चों की तरह रोता भी रहा था। वहाँ पर बहुत से लोग एकत्रा हो गए थे। मेरे पिता जी ने उसको स्नेह से ढाढस बँधाया।

द्रौपदी ने दुर्योधन के दरबार में दयनीय स्थिति में अपने रक्षक भगवान् श्री कृष्ण जी को संकट के समय याद किया तो भगवान् श्री कृष्ण जी ने उसकी उसी समय रक्षा की। जब मक्खन शाह लुभाणे में मूल्यवान वस्तुओं से भरे जहाज-लदान सागर में घिर गए थे तो उस संकट के समय में उसने श्री गुरु नानक देव जी की आराधना की थी। नौवें गुरु जी ने उसी समय डूबते जहाजों को अपनी कृपा से बचा लिया था।

बलवन्त सिंह के हृदय से भी संकट के समय रक्षा के लिए ऐसी ही प्रार्थना निकली थी, यह कितना विचित्रा, विलक्षण व अलौकिक ढंग है, जिसके द्वारा सतगुरु जी अपने प्रियजनों की संकट के समय सहायता करते हैं। बलवन्त सिंह जी के इस प्रत्यक्ष अनुभव से यह स्पष्ट पता चलता है कि बाबा नंद सिंह जी महाराज की पवित्र याद चमत्कारी ढंग से सहायता देती है।

उनका पवित्र नाम लेने से ही डूबते तैर जाते है, मरने वाले को मुक्ति प्राप्त हो जाती है तथा लुप्त हुई आत्माओं को पुनर्जन्म प्राप्त होता है। उनकी याद में हृदय पवित्र हो जाता हैं, आत्मा की स्थिति उच्च हो जाती है तथा जीव मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। उनके पवित्र नाम तथा स्वरूप की पवित्रता में इतना शक्तिशाली आकर्षण है !
अपने सेवक की आपे राखै
आपे नामु जपावै॥
जह जह काज किरति सेवकी की
तहा तहा उठि धावै॥
सेवक कउ निकटी होइ दिखावै॥
सतगुरु अपने सेवक की स्वयं रक्षा करते हैं तथा स्वयं ही नाम को उस के जीवन का आधार बनाते हैं। जहाँ भी सेवक को सतगुरु जी की आवश्यकता पड़ती है, वहाँ वे उसी समय पहुँच जाते हैं तथा समीप हो कर दर्शन देते हैं।

श्री गुरु अर्जुन देव जी इस श्लोक में सतगुरु व सेवक के सम्बन्धों की महिमा का व्याख्यान करते हैं। बाबा जी सहस्त्रों मीलों से हृदय द्वारा की गई प्रार्थना को भी उसी समय सुनते व पूरी करते हैं। उनके दैहिक रूप में अलोप होने के उपरान्त भी अगर किसी ने उनके आगे सच्चे हृदय से विनती की हो तो वह उसी समय सुनी जाती थी तथा अभी भी सुनी जाती है।

आत्मा को झिंझोड़ने वाली ऐसी घटनाओं से बाबा जी के शाश्वत अस्तित्व एवं शाश्वत उपस्थिति के जो प्रमाण प्राप्त होते हैं, वे अति अद्भुत और आश्वस्तिकारक हैं। इस विश्व के कोने-कोने में बैठे अपने सेवकों व श्रद्धालुओं की रक्षा करने के ढंग भी अति अनोखे हैं। चाहे उन्हे दैहिक रूप में अलोप हुए 50 वर्ष बीत चुके हैं पर इस प्रकार की घटनाएँ उनके सदैव जीवित होने की साक्षी हैं। इस घटना से इस विश्वास में वृद्धि हो जाती है कि उनकी रूहानी शक्ति इस सारी सृष्टि में विद्यमान है।