मुक्ति-दाता श्री गुरु अमरदास जी

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My father bowed in total reverence and when he lifted his head, he beheld Sri Guru Amar Das Ji in all Luminosity in place of Sri Guru Granth Sahib. By seeing the devotion and humility of my father, His Holy Eyes were also wet with tears of Love.

एक बार मेरे वयोवृद्ध पिताजी ने गोइन्दवाल साहिब स्थित पवित्र बाउली साहिब में पुनीत स्नान और जपुजी साहिब के पाठ के उपरान्त ‘चुबारा साहिब’ में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के पावन चरणों में सम्मुख कड़ाह-प्रसाद के साथ हाजिर हुए और श्री गुरु अमरदास जी के समक्ष इस प्रकार विनम्र और भावभीनी विनती की-

मुक्ति के दाते, मेरे साहिब, श्री गुरु अमरदास जीओ!
यह बाबा नंद सिंह जी महाराज का कुत्ता।
यह बाबा नंद सिंह जी महाराज के दर का कुत्ता।
यह बाबा नंद सिंह जी महाराज के कुत्तों का भी कुत्ता।
आपके पवित्र चरण-कमलों से भीख मांगता है।
हे अकाल पुरुष, सच्चे पातशाह, सर्वप्रिय और कृपालु परमात्मा! आप ने अपनी असीम दयालुता और कृपालुता से मेरे जैसे दीन कुत्ते को बाउली साहिब में स्नान और जपुजी साहिब के पाठ करने का सामर्थ्य प्रदान किया है।
हे कृपा सागर, मुझ पर अपना दया भरा हाथ रखो। अपने इस दीन सेवक द्वारा अर्पित प्रसाद स्वीकार करो तथा अपने मेहरभरे ‘हुकुमनामे’ की बख़्शिश करो।
जैसे ही पिता जी ने बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र नाम का उच्चारण किया, उसी समय मेरे पिता जी के दायीं ओर सहृदय और दयालु बाबा जी साक्षात प्रकट हो गए। अपने पवित्र कर-कमलों को जोड़ कर बाबा नंद सिंह जी महाराज ने साहिब श्री गुरु अमरदास जी को अति विनम्रतापूर्वक अनुनय किया-
सच्चे पातशाह, अपनी अनंत करुणा की बख़्शिश करो और इस ग़रीब को अपनी करुणा से उपकृत करो। सच्चे पातशाह, इस ग़रीब पर मेहर करो।

इसके उपरान्त महान बाबा जी ने पिता जी को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब से पावन हुकुमनामा लेने का आदेश दिया। इस दौरान पिताजी की आँखों से निरन्तर आँसू बहते रहे। वे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की पवित्र सम्मुखता में बैठे, ‘चौर साहिब’ से सेवा की और फिर हुकुमनामा लिया।

अमरता के पुंज, कृपालु प्रभु श्री गुरु अमरदास जी ने अपनी अनन्त और असीम कृपा और पिताजी को श्री गुरु-ग्रन्थ साहिब के इस पवित्र हुकुमनामे से निवाजा।

हउ वारी वंझा घोली वंझा
तू परबतु मेरा ओल्हा राम।
हउ बलि जाई लख लख लख बरीआ
जिनि भ्रमु परदा खोल्हा राम।
मिटे अंधारे तजे बिकारे
ठाकुर सिउ मनु माना।
प्रभ जी भाणी भई निकाणी
सफल जनमु परवाना।
भई अमोली भारा तोली
मुकति जुगति दरु खोल्हा।
कहु नानक हउ निरभउ होई
सो प्रभु मेरा ओल्हा॥

पिता जी ने पूरी श्रद्धा से अपना शीश झुकाया और जब उन्होंने अपना मस्तक उठाया तो गुरु ग्रन्थ साहिब के स्थान पर प्रकाशपुंज श्री गुरु अमरदास जी के दर्शन हुए। पिता जी की विनम्रता और अथाह भक्ति देख कर उनके (गुरु साहिब के) पवित्र नेत्रा भी प्रेमाश्रुओं से नम थे।

नाम की भरी खुमारी में बाबा नंद सिंह जी महाराज ने श्री गुरु अमरदास जी के प्रत्यक्ष रूप श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की ओर संकेत करते हुए मेरे पिताजी को फ़रमाया-

यह जीता-जागता-बोलता गुरु नानक है।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब परमात्मा द्वारा कहा गया सत्य है।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ईश्वरीय संगीत है जो इस सृष्टि का रहस्य है।
इस भयानक कलियुग में जगद्गुरु श्री अमरदास जी ने ‘बाउली साहिब’ का निर्माण करवाने के उपरान्त धर्मराज को खुली चुनौती देते हुए फरमाया कि जो कोई भी ‘बाउली साहिब’ पर मर्यादा के अनुरूप स्नान और पवित्र जपुजी साहिब का पाठ करेगा उस का धर्मराज के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा। मुक्ति के दाता जगत्-पिता ने आने वाले समय में श्री गुरु नानक साहिब के सभी बच्चों के लिए मुक्ति के द्वारा खोल दिये।
धरम राइ दरि कागद फारे
जन नानक लेखा समझा॥
धरम राइ अब कहा करैगो
जउ फाटिओ सगलो लेखा।
साधसंगि धरम राइ करे सेवा।